वास्तु पूजा
ब्रह्मा, विष्णु, महेश अन्य सभी देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ वास्तु की पूजा भी जाती हैं। वास्तु पूजा से वातावरण में फैली हुई सभी बाधाओं को खत्म किया जा सकता है अन्यथा जीवन जीने में बाधा उतपन्न हो सकती हैं। वास्तु अनहोनी, नुकसान और दुर्भाग्य से भी बचाता है।वास्तु प्राप्ति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव पूजा का विधान है। घर के किसी भी भाग को तोड़ कर दोबारा बनाने से वास्तु भंग दोष लग जाता है। इसकी शांति के लिए वास्तु देव पूजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी यदि आपको लगता है कि किसी वास्तु दोष के कारण आपके घर में कलह, धन हानि व रोग आदि हो रहे हैं तो आपको नवग्रह शांति व वास्तु देव पूजन करवा लेना चाहिए। किसी शुभ दिन या रवि पुण्य योग को वास्तु पूजन कराना चाहिए।कई मह्त्वपूर्ण कार्यो जैसे अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव पूजा का विधान है। घर के किसी भी भाग को तोड़ कर दोबारा बनाने से वास्तु भंग दोष लग जाता है।
क्या है वास्तु पूजा
इसकी शांति के लिए वास्तु देव पूजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी यदि आपको लगता है कि किसी वास्तु दोष के कारण आपके घर में कलह, धन हानि व रोग आदि हो रहे हैं तो आपको वास्तु पूजन करवा लेना चाहिए। किसी शुभ दिन या रवि पुष्य योग को वास्तु पूजन कराना चाहिए।
मंत्रोच्चारण द्वारा शरीर शुद्धि, स्थान शुद्धि व आसन शुद्धि की जाती है। सर्वप्रथम गणेश जी का आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात नवग्रह पूजा करना चाहिए। वास्तु पूजन के लिए गृह वास्तु में (81) पव के वास्तु चक्र का निर्माण किया जाता है। 81 पदों में (45) देवताओं का निवास होता है। ब्रह्माजी को मध्य में (9) पद दिए गए है चारों दिशाओं में (32) देवता और मध्य में (13) देवता स्थापित होते हैं। इनका मंत्रोच्चरण से आह्वान किया जाता है। वास्तुपूजन की समंत्रक विधि में ये प्रक्रियाएं पूजन का अंग होती है-स्वस्तिवचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन और पूजन, अभिषेक, सोलहमातृका पूजन, वसोधरा पूजन, आचार्य का वरण, योगिनी पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, और पूजन, वास्तु मंडल पूजन और स्थापना, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान, पूर्णाहुति, वास्तुपुरुष-प्रार्थनाअग्नेय स्थापना, नवग्रह स्थापना, इसके पश्चात आठों दिशाओं, पृथ्वी व आकाश की पूजा की जाती है। इस सामग्री में तिल, जौ, चावल, घी, बताशे मिलाकर वास्तु को निम्न मंत्र पढ़ते हुए 108 आहुतियां दी जाती हैं।
मंत्र- ऊँ नमो नारायणाय वास्तुरूपाय, भुर्भुवस्य पतये भूपतित्व में देहि ददापय स्वाहा।।
तत्पश्चात आरती करके श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार वास्तु देव पूजन करने से उसमें रहने वाले लोगों को सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।